सोमवार, 19 मई 2025

बीसवें तीर्थंकर भगवान श्री मुनिसुव्रतनाथ जी परिचय

बीसवें तीर्थंकर- श्री मुनिसुव्रतनाथ जी
चिह्न- कछुआ
उत्पन्न काल- 54 लाख 43 हज़ार 400 वर्ष पश्चात

कछुआ चिह्न से युक्त जैन धर्म के 20वें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथ जी का प्रभु परिचय।

तीर्थंकर प्रकृति बन्ध- राजा हरिवर्मा (चम्पापुरी)
स्वर्ग/विमान- आनत स्वर्ग में इन्द्र (तिलोयपण्णति/4/522-525)
प्राणत स्वर्ग में इन्द्र (पद्मपुराण एवं हरिवंशपुराण)

तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथ जी ने राजा हरिवर्मा की पर्याय में तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया और वहां से आयु पूर्ण कर प्राणत स्वर्ग में इन्द्र हुए।

गर्भकल्याणक
स्थान- राजगृही (कुशाग्र नगर)
कुल- यदुवंश (हरिवंश)
गोत्र- काश्यप गोत्रीय
पिता का नाम- राजा सुमित्र
माता का नाम- रानी श्यामा देवी (सोमावती)
तिथि- श्रावण कृष्ण द्वितीया
समय- पूर्वाह्नकाल (प्रातःकाल)
नक्षत्र- श्रवण

प्राणतेन्द्र की आयु पूर्ण कर तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथ जी के जीव ने राजगृही नगर के यदुवंशी काश्यप गोत्रीय राजा सुमित्र की पटरानी सोमा देवी के गर्भ में श्रावण कृष्ण द्वितीया के दिन प्रातःकाल के श्रवण नक्षत्र में अवतरित हुए।


जन्मकल्याणक
स्थान- राजगृही (कुशाग्र नगर)
तिथि- वैशाख कृष्ण दशमी
समय- पूर्वाह्नकाल (प्रातःकाल)
नक्षत्र- श्रवण
राशि- मकर
शरीर का रंग- नील वर्ण
शरीर की ऊंचाई- 20 धनुष

नौ माह उपरांत तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथ जी ने राजगृही नगर में वैशाख कृष्ण दशमी के दिन पूर्वाह्नकाल के श्रवण नक्षत्र में मकर राशि में जन्म लिया। इनके शरीर का रंग नील वर्ण और शरीर की ऊंचाई 20 धनुष प्रमाण थी।

दीक्षाकल्याणक
वैराग्य का कारण- जातिस्मरण
तिथि- वैशाख कृष्ण दशमी
समय- अपराह्नकाल (दोपहर बाद)
नक्षत्र- श्रवण
पालकी- अपराजिता
नगर- राजगृही
वन- नील वन 
दीक्षा वृक्ष- चम्पक वृक्ष
वृक्ष की ऊंचाई- 240 धनुष
सहदीक्षित- 1 हज़ार राजा

एक दिन तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथ जी को अपने पूर्वभवों के स्मरण से वैराग्य हो गया और तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथ जी ने बैशाख कृष्ण दशमी के दिन अपराह्नकाल के श्रवण नक्षत्र में देवों द्वारा लाई गई अपराजिता नामक दीक्षा पालकी में आरूढ़ होकर राजगृही नगर के नील वन में 240 धनुष ऊँचाई वाले चम्पक वृक्ष के नीचे 1 हज़ार राजाओं सहित दीक्षा को ग्रहण किया।

प्रथमाहार
उपवास का नियम- तेला
दीक्षा के कितने दिन बाद- 3 दिन
स्थान- राजगृही नगर
आहारदाता - राजा वृषभदत्त
आहार की वस्तु- दूध की खीर
केवलज्ञान से पूर्व उपवास- 3 दिन
तपस्या काल- 7500 वर्ष केवलीकाल

तेला का नियम पूर्ण कर तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ जी ने दीक्षा के 3 दिन उपरांत राजगृही नगर के राजा वृषभदत्त के यहाँ दूध की खीर का प्रथमाहार ग्रहण किया। केवल ज्ञान से पूर्व उन्होंने तीन उपवास पूर्ण किए इनका केवली काल 7500 वर्ष प्रमाण था।

ज्ञानकल्याणक
तिथि- वैशाख कृष्णा नवमी
समय- पूर्वाह्नकाल (प्रातःकाल)
नक्षत्र- श्रवण
स्थान- राजगृही नगर
वन-नील वन
वृक्ष- चम्पक वृक्ष

तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ जी को वैशाख कृष्ण नवमी के दिन पूर्वाह्नकाल के श्रवण नक्षत्र में राजगृही नगर के नील वन में चम्पक वृक्ष के नीचे केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।

समवशरण
विस्तार (योजन में)- 2.5 योजन
विस्तार (कोस में)- 10
कुल गणधर-18
मुख्य गणधर- मल्लि 
कुल मुनि- 30 हज़ार

केवलज्ञान उपरांत धनपति कुबेर द्वारा ढाई योजन और 10 को विस्तार वाले लम्बे चौड़े समवशरण की रचना की गई। तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथ जी के समवशरण में मुख्य गणधर श्री मल्लि सहित कुल 18 गणधर और 30 हज़ार मुनि थे।


पूर्वधर- 500
शिक्षक- 21 हज़ार
अवधिज्ञानी- 1,800
केवली - 1,800
विक्रियाधारी- 2,200
विपुलमति- 1,500
वादी मुनि- 1,200
अनुबद्ध केवली- 12

जिनमें 500 पूर्वधर, 21 हज़ार शिक्षक, 1,800 अवधिज्ञानी, 1,800 केवली, 2,200 विक्रियाधारी, 1500 विपुलमति, 1200 वादी मुनि सहित 12 अनुबद्ध केवली समवशरण के प्रथम परकोठे में विराजमान थे।

मुख्य आर्यिका- पूर्वदत्ता जी
आर्यिका- 50 हज़ार
मुख्य श्रोता- राजा अजितञ्जय
श्रावक- 1 लाख
श्राविकाएँ- 3 लाख

तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथ जी के समवशरण में मुख्य आर्यिका पूर्वदत्ता सहित 50 हज़ार आर्यिकाएँ एवं मुख्य श्रोता राजा अजितञ्जय सहित कुल 1 लाख श्रावक और 3 लाख श्राविकाओं सहित...

मुख्य यक्ष- श्री भृकुटि देव (वरुण)
मुख्य यक्षिणी- श्री अपराजिता देवी (बहुरूपिणि देवी)
क्षेत्रपाल- 1.श्री तनदराज जी 2. श्री गुणराज 3. श्री कल्याणराज जी 4. श्री भव्यराज जी।

मुख्य यक्ष श्री भृकुटि देव और मुख्य यक्षिणी श्री अपराजिता देवी सहित चार क्षेत्रपाल श्री तनदराज जी श्री गुणराज श्री कल्याणराज श्री भव्यराज प्रतिदिन भगवान की दिव्यध्वनि का श्रवण करते थे।

मोक्षकल्याणक
तिथि- फाल्गुन कृष्णा द्वादशी
योगनिरोध- 1 माह पूर्व
समय- सांयकाल
स्थान- श्री सम्मेदशिखर जी
विशिष्ठ स्थान- निर्झर कूट
नक्षत्र- श्रवण
आसन- खड्गासन
सहमुक्त- 1 हज़ार मुनि

बहुत वर्षों तक भव्यों को उपदेश देने के उपरांत तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथ जी ने एक माह का योगनिरोध पूर्णकर फाल्गुन कृष्णा द्वादशी के दिन सांयकाल के श्रवण नक्षत्र में श्री सम्मेदशिखर जी के निर्झर कूट से खड्गासन मुद्रा में 1 हज़ार मुनियों सहित मोक्ष को प्राप्त किया।

अनुत्तर विमान पाने वाले मुनि- 8 हज़ार 800 मुनि
मोक्ष पाने वाले- 19 हज़ार 200 मुनि
पहले से ग्रैवेयक पद पाने वाले- 2000 मुनि

तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथ जी के समवशरण से अनुत्तर विमान पाने वाले 8 हज़ार 800 मुनि, मोक्ष पाने वाले 19 हज़ार 200 मुनि, पहले से ग्रैवेयक पद पाने वाले 2 हज़ार हुए है।

विवाह- विवाहित
मुख्य पुत्र- विजय
संघपति- राजा श्री रामचन्द्र जी

तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथ जी के संघपति का नाम राजा श्री रामचन्द्र जी था।

कुमार काल- 7500 वर्ष
राज्यकाल- 15 हज़ार वर्ष।
केवली काल- 7500 वर्ष (11 माह कम)
छद्मस्थ काल- 11 माह
आयु- 30 हज़ार वर्ष
तीर्थ प्रवर्तन काल- 6 लाख 5 हज़ार वर्ष प्रमाण

तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथ जी का कुमार काल 7500 वर्ष, राज्यकाल 15 हज़ार वर्ष प्रमाण, केवली काल 7500 वर्ष एक माह कम प्रमाण, छद्मस्थ काल 11 माह, और इनकी कुल आयु 30 हज़ार वर्ष प्रमाण थी। तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथ जी का तीर्थ प्रवर्तन काल 6 लाख 5 हज़ार वर्ष तक रहा था।

प्रभु के काल में शलाका पुरुष
दसवें चक्रवर्ती- श्री हरिषेण
आठवें बलदेव- श्री राम
आठवें नारायण- श्री लक्ष्मण
आठवें प्रतिनारायण- श्री रावण
विशेष पद- माण्डलिक राजा

तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथ जी के तीर्थ काल में 10वें चक्रवर्ती श्री हरिषेण, 8वें बलदेव श्री रामचन्द्र जी, 8वें नारायण श्रीलक्ष्मण, 8वें प्रतिनारायण श्री रावण हुए हैं। तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथ जी को माण्डलिक राजा का विशेष पद प्राप्त हुआ।

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