मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

जिनवाणी स्तुति

दुनिया की हर माँ अपने बेटे को,लोरी सुनाकर सुलाये,
एक है माँ जिनवाणी को लोरी सुनाकर जगाये।
                                  हो रे हो मेरे लाल....(2)

ये दिन कब जायेगा,वो दिन कब आएगा मेरा लाल अँखियाँ खोलेगा होगा दुनिया में शोर मेरे ममता के बोल,मेरा लाल मुख से बोलेगा....आ मेरी गोद में(2)
माँ तुझे तुझसे परिचित कराये, लोरी सुनाकर जगाये।
                                      हो रे हो मेरे लाल....

गोद मेरी मिली आँख तेरी खुली मेरे लाल अब तू सोना न,जन्म लेना नही मृत्यु पाना नहीं मेरे लाल अवसर खोना न,अब बढ़ाना न माँ(2)मौत तुझको कभी भी न आये लोरी सुनाकर जगाये।
                                     हो रे हो मेरे लाल....

रूप ज्ञायक तेरा तुझमे सम्यक भरा मेरे लाल तू शिव साधक है,ये स्वभाव तेरे-तेरे अंदर रहे,मेरे लाल तू आराधक है,मुक्ति तेरी दुल्हन(2)जो स्वयंबर में तुझको बुलाये लोरी सुनाकर जगाये।
                                     हो रे हो मेरे लाल....

सिद्ध बाबा तेरे आप्त तेरे पिता मेरे लाल उनसे मिलना तू, मैं हूँ जिनकी किरण वो है तारण-तरण मेरे लाल उन संग रहना तू, वे स्वयं में रहे(2) तू स्वयं में स्वयं घर बनाये, लोरी सुनाकर जगाये।
                                     हो रे हो मेरे लाल.....

दृष्टि नासाग्र हो भाव वैराग्य हो मेरा नाम त्रिभुवन स्वामी हो,जग में रहता भी हो पर हो जग से अलग मेरा नाम अंतर्यामी हो,है यही भावना लाल बनके तू ऐसा दिखाये,लोरी सुनाकर जगाये।
                                       हो रे हो मेरे लाल....

दुनिया की हर माँ अपने बेटे को लोरी सुनाकर सुलाये,एक है माँ जिनवाणी जो लोरी सुनाकर जगाये।
लोरी सुनाकर जगाये,लोरी सुनाकर जगाये......

                       ।।समाप्त।।
                    ।।जय जिनेन्द्र।।

दुनिया की हर माँ अपने बेटे को -जिनवाणी स्तुति
    

https://youtu.be/5hRaTuEtkqM
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सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

तीर्थंकर परिचय

ऋषभ प्रथम तीर्थंकर जो विश्व के अदिब्रह्म।
दूसरे अजितनाथ तीर्थंकर देव को करू प्रणम्य।।
तीसरे सम्भव नाथ जिनेन्द्र प्रभु को नमन।
अभिनंदन चौथे भगवंत है जिनको करते सब वन्दन।।
पंचम सुमतिनाथ जिनराजा पद्मप्रभु है षष्टम जिनेश।
सप्तम सुपारसनाथ नाथ प्रभु है मैं पूजूँ उनको हरदम।।
अष्टम चंदप्रभु जिन स्वामी मैं पूजूँ वन्दौ मन वच काय।
नवम पुष्पदंत जिन संग दशम शीतलनाथ जी को चितलाय।।
एकादश श्रेयांशनाथ जिन के चरण कमल मन लाय।
वासुपूज्य द्वादश तीर्थंकर विमलनाथ त्रयोदश मन भाय।।
जिन अनंत चौदश तीर्थंकर धर्मनाथ पंद्रस है बताये।
शांतिनाथ सोलह तीर्थंकर कुंथुनाथ सत्रह भगवन है।
अरहेनाथ अष्टादश स्वामी।नवदश मल्लिनाथ जिनराजा मुनिसुव्रत विंशति है कहाय।
है इक्कीसवें नमिनाथ जिन।नेमि बाईसवें शीश नवाये।
पार्श्वनाथ तेईसवें तीर्थंकर। अंतिम वर्धमान कहाय।

इस स्तुति को पढ़ कर चौबीस तीर्थंकर भगवानों के नाम सरलता से याद करे।
                  ।। जय जिनेन्द्र।।

Jinvani Gyanshala

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