ऋषभ प्रथम तीर्थंकर जो विश्व के अदिब्रह्म।
दूसरे अजितनाथ तीर्थंकर देव को करू प्रणम्य।।
तीसरे सम्भव नाथ जिनेन्द्र प्रभु को नमन।
अभिनंदन चौथे भगवंत है जिनको करते सब वन्दन।।
पंचम सुमतिनाथ जिनराजा पद्मप्रभु है षष्टम जिनेश।
सप्तम सुपारसनाथ नाथ प्रभु है मैं पूजूँ उनको हरदम।।
अष्टम चंदप्रभु जिन स्वामी मैं पूजूँ वन्दौ मन वच काय।
नवम पुष्पदंत जिन संग दशम शीतलनाथ जी को चितलाय।।
एकादश श्रेयांशनाथ जिन के चरण कमल मन लाय।
वासुपूज्य द्वादश तीर्थंकर विमलनाथ त्रयोदश मन भाय।।
जिन अनंत चौदश तीर्थंकर धर्मनाथ पंद्रस है बताये।
शांतिनाथ सोलह तीर्थंकर कुंथुनाथ सत्रह भगवन है।
अरहेनाथ अष्टादश स्वामी।नवदश मल्लिनाथ जिनराजा मुनिसुव्रत विंशति है कहाय।
है इक्कीसवें नमिनाथ जिन।नेमि बाईसवें शीश नवाये।
पार्श्वनाथ तेईसवें तीर्थंकर। अंतिम वर्धमान कहाय।
इस स्तुति को पढ़ कर चौबीस तीर्थंकर भगवानों के नाम सरलता से याद करे।
।। जय जिनेन्द्र।।
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