।। श्री पार्श्वनाथ स्तोत्र अर्थ सहित।।
नरेन्द्रं फणीन्द्रं सुरेन्द्रं अधीशं,
शतेन्द्रं सु पूजैं भजैं नाय-शीशं।
मुनीन्द्रं गणीन्द्रं नमो जोड़ि हाथं,
नमो देव-देवं सदा पार्श्वनाथं॥
भावार्थ - जिनके आगे चक्रवर्ती, धरणेन्द्र, सौधर्म इन्द्र आदि सभी मस्तक को झुकाकर अपने आपको धन्य मानते है, साथ ही मनुष्यों एवं मुनिगणों में श्रेष्ठ गणधर देव भी जिनकी भक्ति भाव से हाथ जोड़ कर वन्दना करते है।ऐसे देवाधिदेव श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
गजेन्द्रं मृगेन्द्रं गह्यो तू छुड़ावे,
महा-आगतैं नागतैं तू बचावे।
महावीरतैं युद्ध में तू जितावे,
महा-रोगतैं बंधतैं तू छुड़ावे॥
भावार्थ - जिनका नाम मात्र मदमस्त हाथियों सिंहों, जंगल की आग एवं भयानक नागों से बचाने में समर्थ है, जिनके नाम के सुमिरन से युद्ध में महावीरों से भी विजय और असाध्य रोग भी नष्ट हो जाते है। ऐसे चिंतामणि श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
दुःखी-दुःखहर्ता सुखी-सुखकर्ता,
सदा सेवकों को महानंद-भर्ता।
हरे यक्ष-राक्षस भूतं पिशाचं,
विषम डाकिनी विघ्न के भय अवाचं॥
भावार्थ - जिनके दर्शन करने से दुखियों के दुःख तो दूर होते ही है और साथ ही सुख सम्पन्न लोग भी चिंताओं को भुलाकर आनंद को पाते है, जिनका स्मरण करने मात्र से भूत-पिशाच आदि का भय क्षण मात्र में ही दूर हो जाता है।ऐसे विघ्न निवारक श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
दरिद्रीन को द्रव्य के दान दीने,
अपुत्रीन को तू भले पुत्र कीने।
महासंकटों से निकारे विधाता,
सबे संपदा सर्व को देहि दाता॥
भावार्थ - जिनके स्मरण मात्र से ही दरिद्री भी चक्रवर्ती समान हो गए और जिनके पास कोई संतान नही थी, उन्होंने भी पुत्र को प्राप्त किया। जिनका नाम ही महासंकटों का निवारण करने में सक्षम है, और जिन्होंने विश्व की सभी सम्पदाओं का दान कर दिया है। ऐसे महादानी श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
महाचोर को वज्र को भय निवारे,
महापौन के पुंजतैं तू उबारे।
महाक्रोध की अग्नि को मेघधारा,
महालोभ शैलेश को वज्र भारा॥
भावार्थ - जिनका नाम चोरों के आतंक एवं वज्र आदि के भय से शीघ्र मुक्ति दिलाता है और संसार रूपी समुद्र से पार होने के लिए नौका और उनका शांत स्वरूप क्रोध रूपी दावागनल को शांत करने के लिए मेघों के समान है। जिनका नाम महलोभ रूपी पर्वत को नष्ट करने के लिए वज्र का कार्य करता है, ऐसे दयानिधान श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
महामोह अंधेर को ज्ञान-भानं,
महा-कर्म-कांतार को द्यौ प्रधानं।
किये नाग-नागिन अधोलोक स्वामी,
हरयों मान तू दैत्य को हो अकामी॥
भावार्थ - जिनका ज्ञान महा मोह रूपी अंधकार को विलुप्त करने में सूर्य के समान और कर्म रूपी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए वीर के समान है, जिन्होंने करुणामय उपदेश देकर मरते हुए नाग-नागिन को अधोलोक का स्वामी बना दिया, साथ ही जिनके क्षमा भाव ने क्षण मात्र में ही कमठ देव के मान पर विजय को प्राप्त कर लिया। ऐसे सर्व शत्रु विजयी श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
तुही कल्पवृक्षं तुही कामधेनुं,
तुही दिव्य-चिंतामणी नाग एनं।
पशु-नर्क के दुःखतैं तू छुड़ावै,
महास्वर्ग में मुक्ति में तू बसावै।।
भावार्थ - हे प्रभु! आप ही दीनों के लिए कल्पवृक्ष, आप ही दुखियों के दुःख को दूर करने के लिए कामधेनु और लोक में व्यथित जनसमूह के लिए आप ही तो चिंतामणि रत्न के समान है। आपका नाम ही पशु नरक आदि दुःख देने वाली गतियों से छुड़ाने और स्वर्ग एवं मोक्ष को दिलाने वाला है।अतः दुखों से छुड़ाकर मोक्ष सुख के लिए श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
करे लोह को हेम-पाषाण नामी,
रटे ना सो क्यों न हो मोक्षगामी।
करै सेव ताकी करैं देव सेवा,
सुने बैन सोही लहे ज्ञान मेवा॥
भावार्थ - हे प्रभु! आपका नाम मात्र लोहे को पारस रत्न के समान कंचन कर देता है।आपके नाम का स्मरण करते रहने से मोक्ष मार्ग को प्राप्त करने का कठिन मार्ग भी सुलभ हो जाता है। कहते है आपके भक्तों की देवों द्वारा सेवा की जाती है। जिन भक्तों ने भी आपके सुवचनों को सुना है वे शीघ्र ही आपके समान केवलज्ञान के धारी हो गए, अतः मैं अपने अज्ञान का दमन करने के लिए श्री पार्श्वनाथ भगवान को बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
जपै जाप ताको नहीं पाप लागे,
धरे ध्यान ताके सबै दोष भागे।
बिना तोहि जाने धरे भव घनेरे,
तुम्हारी कृपातैं सरैं काम मेरे॥
भावार्थ - हे प्रभु! आपके नाम का स्मरण करते रहने से कोई भी पाप भक्त को छू तक नही सकता, आपका ध्यान करते रहने से सभी दोषों से शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती है। हे दीनानाथ! आपको पाये बिना ही मैं इस संसार में भटकता रहा हूँ। लेकिन अब आपकी शरण प्राप्त होने से मेरे सभी कार्य पूर्ण हो गए है अतः ऐसे शरणदाता श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
(दोहा)
गणधर इन्द्र न कर सके,
तुम विनती भगवान।
द्यानत प्रीति निहार कै,
कीजे आप समान॥
भावार्थ - हे प्रभु ! आपके नाम की सम्पूर्ण स्तुति जब गणधर देव और इन्द्र तक नही कर सके तो मैं अर्थात द्यानतराय आपकी स्तुति कैसे कर सकता हूँ। उनके समक्ष मैं तो अबोध बालक के समान हूँ अतः हे कृपालुदेव! आपसे बस इतनी ही विनती है कि मुझ सेवक शुभ भावना एवं प्रीति को देखकर मुझे भी अपने समान बना दीजिये।
नरेन्द्रं फणीन्द्रं सुरेन्द्रं अधीशं,
शतेन्द्रं सु पूजैं भजैं नाय-शीशं।
मुनीन्द्रं गणीन्द्रं नमो जोड़ि हाथं,
नमो देव-देवं सदा पार्श्वनाथं॥
भावार्थ - जिनके आगे चक्रवर्ती, धरणेन्द्र, सौधर्म इन्द्र आदि सभी मस्तक को झुकाकर अपने आपको धन्य मानते है, साथ ही मनुष्यों एवं मुनिगणों में श्रेष्ठ गणधर देव भी जिनकी भक्ति भाव से हाथ जोड़ कर वन्दना करते है।ऐसे देवाधिदेव श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
गजेन्द्रं मृगेन्द्रं गह्यो तू छुड़ावे,
महा-आगतैं नागतैं तू बचावे।
महावीरतैं युद्ध में तू जितावे,
महा-रोगतैं बंधतैं तू छुड़ावे॥
भावार्थ - जिनका नाम मात्र मदमस्त हाथियों सिंहों, जंगल की आग एवं भयानक नागों से बचाने में समर्थ है, जिनके नाम के सुमिरन से युद्ध में महावीरों से भी विजय और असाध्य रोग भी नष्ट हो जाते है। ऐसे चिंतामणि श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
दुःखी-दुःखहर्ता सुखी-सुखकर्ता,
सदा सेवकों को महानंद-भर्ता।
हरे यक्ष-राक्षस भूतं पिशाचं,
विषम डाकिनी विघ्न के भय अवाचं॥
भावार्थ - जिनके दर्शन करने से दुखियों के दुःख तो दूर होते ही है और साथ ही सुख सम्पन्न लोग भी चिंताओं को भुलाकर आनंद को पाते है, जिनका स्मरण करने मात्र से भूत-पिशाच आदि का भय क्षण मात्र में ही दूर हो जाता है।ऐसे विघ्न निवारक श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
दरिद्रीन को द्रव्य के दान दीने,
अपुत्रीन को तू भले पुत्र कीने।
महासंकटों से निकारे विधाता,
सबे संपदा सर्व को देहि दाता॥
भावार्थ - जिनके स्मरण मात्र से ही दरिद्री भी चक्रवर्ती समान हो गए और जिनके पास कोई संतान नही थी, उन्होंने भी पुत्र को प्राप्त किया। जिनका नाम ही महासंकटों का निवारण करने में सक्षम है, और जिन्होंने विश्व की सभी सम्पदाओं का दान कर दिया है। ऐसे महादानी श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
महाचोर को वज्र को भय निवारे,
महापौन के पुंजतैं तू उबारे।
महाक्रोध की अग्नि को मेघधारा,
महालोभ शैलेश को वज्र भारा॥
भावार्थ - जिनका नाम चोरों के आतंक एवं वज्र आदि के भय से शीघ्र मुक्ति दिलाता है और संसार रूपी समुद्र से पार होने के लिए नौका और उनका शांत स्वरूप क्रोध रूपी दावागनल को शांत करने के लिए मेघों के समान है। जिनका नाम महलोभ रूपी पर्वत को नष्ट करने के लिए वज्र का कार्य करता है, ऐसे दयानिधान श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
महामोह अंधेर को ज्ञान-भानं,
महा-कर्म-कांतार को द्यौ प्रधानं।
किये नाग-नागिन अधोलोक स्वामी,
हरयों मान तू दैत्य को हो अकामी॥
भावार्थ - जिनका ज्ञान महा मोह रूपी अंधकार को विलुप्त करने में सूर्य के समान और कर्म रूपी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए वीर के समान है, जिन्होंने करुणामय उपदेश देकर मरते हुए नाग-नागिन को अधोलोक का स्वामी बना दिया, साथ ही जिनके क्षमा भाव ने क्षण मात्र में ही कमठ देव के मान पर विजय को प्राप्त कर लिया। ऐसे सर्व शत्रु विजयी श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
तुही कल्पवृक्षं तुही कामधेनुं,
तुही दिव्य-चिंतामणी नाग एनं।
पशु-नर्क के दुःखतैं तू छुड़ावै,
महास्वर्ग में मुक्ति में तू बसावै।।
भावार्थ - हे प्रभु! आप ही दीनों के लिए कल्पवृक्ष, आप ही दुखियों के दुःख को दूर करने के लिए कामधेनु और लोक में व्यथित जनसमूह के लिए आप ही तो चिंतामणि रत्न के समान है। आपका नाम ही पशु नरक आदि दुःख देने वाली गतियों से छुड़ाने और स्वर्ग एवं मोक्ष को दिलाने वाला है।अतः दुखों से छुड़ाकर मोक्ष सुख के लिए श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
करे लोह को हेम-पाषाण नामी,
रटे ना सो क्यों न हो मोक्षगामी।
करै सेव ताकी करैं देव सेवा,
सुने बैन सोही लहे ज्ञान मेवा॥
भावार्थ - हे प्रभु! आपका नाम मात्र लोहे को पारस रत्न के समान कंचन कर देता है।आपके नाम का स्मरण करते रहने से मोक्ष मार्ग को प्राप्त करने का कठिन मार्ग भी सुलभ हो जाता है। कहते है आपके भक्तों की देवों द्वारा सेवा की जाती है। जिन भक्तों ने भी आपके सुवचनों को सुना है वे शीघ्र ही आपके समान केवलज्ञान के धारी हो गए, अतः मैं अपने अज्ञान का दमन करने के लिए श्री पार्श्वनाथ भगवान को बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
जपै जाप ताको नहीं पाप लागे,
धरे ध्यान ताके सबै दोष भागे।
बिना तोहि जाने धरे भव घनेरे,
तुम्हारी कृपातैं सरैं काम मेरे॥
भावार्थ - हे प्रभु! आपके नाम का स्मरण करते रहने से कोई भी पाप भक्त को छू तक नही सकता, आपका ध्यान करते रहने से सभी दोषों से शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती है। हे दीनानाथ! आपको पाये बिना ही मैं इस संसार में भटकता रहा हूँ। लेकिन अब आपकी शरण प्राप्त होने से मेरे सभी कार्य पूर्ण हो गए है अतः ऐसे शरणदाता श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
(दोहा)
गणधर इन्द्र न कर सके,
तुम विनती भगवान।
द्यानत प्रीति निहार कै,
कीजे आप समान॥
भावार्थ - हे प्रभु ! आपके नाम की सम्पूर्ण स्तुति जब गणधर देव और इन्द्र तक नही कर सके तो मैं अर्थात द्यानतराय आपकी स्तुति कैसे कर सकता हूँ। उनके समक्ष मैं तो अबोध बालक के समान हूँ अतः हे कृपालुदेव! आपसे बस इतनी ही विनती है कि मुझ सेवक शुभ भावना एवं प्रीति को देखकर मुझे भी अपने समान बना दीजिये।
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