सोमवार, 12 मार्च 2018

                        ।।श्री शान्तिनाथ चालीसा।।

दोहा:-
परमेष्ठी जिनधर्म जिन आगम मंगलकार।
जिन चैत्यालय चैत्य को वन्दन बारम्बार।।
शान्तिनाथ भगवान के करते चरण प्रणाम।
चालीसा गाते यहाँ पाने निज का धाम।।

चौपाई:-
जम्बूद्वीप में क्षेत्र बताया,
भरत क्षेत्र अनुपम कहलाया।
भारत देश रहा शुभकारी,
जिसकी महिमा जग से न्यारी।।

नगर हस्तिनापुर के स्वामी,
विश्वसेन राजा थे नामी।
रानी एरादेवी पाये,
जिनके सुत शांति जिन गाये।।

माँ के गर्भ में प्रभु जब आये,
रत्नवृष्टि तब देव कराये।
भादव कृष्ण सप्तमी जानो,
शुभ नक्षत्र भरणी पहचानो।।

ज्येष्ठ कृष्ण चौदस शुभकारी,
मेष राशि जानो मनहारी।
जन्म प्रभुजी ने जब पाया,
देवराज ऐरावत लाया।।

शची ने प्रभु को गोद उठाया,
फिर ऐरावत पर बैठाया।
पाण्डुक वन अभिषेक कराया,
सहस्त्र नेत्र से दर्शन पाया।।

पग में हिरण चिह्न शुभ गाया,
शान्तिनाथ तब नाम बताया।
पंचम चक्रवर्ती कहलाए,
कामदेव बारहवें गाए।।

तीर्थंकर सोलहवें जानो,
यथा नाम गुणकारी मानो।
नवनिधियों के स्वामी गाए,
चौदह रत्न श्रेष्ठ बतलाये।।

सहस्त्र छियानवें रानी पाये,
छह खण्डों पर राज्य चलाये।
सूर्यवंश के स्वामी गाये,
सारे जग में यश फैलाये।।

जातिस्मरण प्रभु को आया,
महाव्रतों को प्रभु ने पाया।
एक लाख राजा संग आये,
साथ में प्रभु के दीक्षा पाये।।

ज्येष्ठ कृष्ण चौदस तिथि जानो,
तप कल्यायक प्रभु का मानो।
आत्मध्यान कीन्हें तब स्वामी,
किये निर्जरा अन्तर्यामी।।

पौष सुदी दशमी शुभ आई,
केवलज्ञान की ज्योति जगाई।
समवशरण आ देव बनाये,
प्रभु की जय- जयकार लगाये।।

दिव्य देशना आप सुनाये,
धर्म ध्वजा जग में फहराये।
छत्तिस गणधर प्रभुजी पाये,
प्रथम गणि चक्रायुध गाये।।

यक्ष गरुड़ जानो तुम भाई,
यक्षी श्रेष्ठ मानसी गाई।।
योगनिरोध किये जगनामी,
गुण अनन्त पाए जिनस्वामी।।

नौ सौ मुनि श्रेष्ठ बतलाये,
साथ में प्रभु के मुक्ति पाये।
महामोक्ष फल तुमने पाया,
शिवपुर अपना धाम बनाया।।

कूट कुंदप्रभ जानो भाई,
कायोत्सर्गासन शुभ गाई।
जग में कई जिनबिम्ब निराले,
अतिशय श्रेष्ठ दिखाने वाले।।

आहार क्षेत्र बानपुर जानो,
वीना वाराह भी पहचानो।
रामटेक सीरोन कहाया,
खजुराहो पचराई गाया।।

गाँव- गाँव में बिम्ब बताये,
गिनती कहो कौन कर पाये।
जो भी अर्चा करते भाई,
अर्चा होती है फलदायी।।

कई लोगों ने शुभ फल पाये,
रोग- शोक दारिद्र नशाये।
शान्तिनाथ शान्ति के दाता,
तीनलोक में भाग्यविधाता।।

भावसहित प्रभु को जो ध्याये,
इच्छित वर वह मानव पाये।
पूजा अर्चा कर जो ध्यावें,
सुख शांति सौभग्य जगावें।।

निज आतम का वैभव पावें,
अनुक्रम से फिर शिवपुर जावें। - 2

दोहा:-
चालीसा चालीस दिन, पढ़े भाव के साथ।
सुख शान्ति आनन्द पा, बने श्री का नाथ।।
दीन- दरिद्री होये जो, या हो पुत्र विहीन।

सुत पावें सुख- सम्पदा, होवें ज्ञान प्रवीण।।

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