मोक्षमार्गस्य नेत्तारं भेत्तारं कर्म भूभृताम्।
ज्ञातारं विश्व तत्त्वानां वन्दे तद्गुण लब्धये।।
अर्थ : जो मोक्ष मार्ग के नेता है, जिन्होंने अपने कर्म को नष्ट कर दिया है।जो विश्व के सभी तत्वों के ज्ञाता है।ऐसे जिनेन्द्र देव के गुण हमे भी प्राप्त हो।
ये श्लोक तत्वार्थ सूत्र से लिया गया है।इसके रचियेता उमास्वामी जी महाराज है।हम मोक्ष को क्या समझते है? उसके बारे में क्या जानते है?मोक्ष कहा है?कैसा है?कौन है वहां? और सबसे बड़ा प्रश्न तो ये है मोक्ष होता किसको है और कब होता है ?
हर धर्मों में मोक्ष की एक अलग व्याख्या है जैसे हिन्दू बुद्ध आदि परंतु कई मतों में मोक्ष को स्थान प्राप्त ही नही है।
वैदिक मत में मोक्ष
कहा जाता है जब आत्मा को परमात्मा अपने पास रख लेता है या शुभ कर्मों के द्वारा आत्मा उस लायक हो जाती है उसको वैदिक मत में मोक्ष कहा गया है।और वैदिक मत अनुसार आत्मा का कोई अस्तित्व नही होता मोक्ष के बाद उसको वेदों अनुसार मोक्ष कहा गया है।
इस्लाम मत में मोक्ष
मोक्ष को इस्लाम में मगफिरत कहा गया है।पर इस्लाम में मोक्ष का इतना महत्त्व नही दिया गया है।
बोद्ध मत में मोक्ष
बोद्ध अनुसार आत्मा जब बोधिज्ञान को प्राप्त कर लेती है और निर्वाण लायक हो जाती है।तब आत्मा को मोक्ष हो जाता है।भगवान बुद्ध ने मोक्ष (निर्वाण) को धम्म से जोड़ा है अर्थात धर्म से जोड़कर कहा है।मोक्ष तो एक व्यवस्था है।
आइये जानते है....जैन मत में मोक्ष का क्या महत्त्व है।
मोक्ष के कई नाम है जैसे सिद्धालय निर्वाण सिद्धशिला आदि।पर हम ये कैसे जाने की यहाँ तक पंहुचा कैसे जाए। जिनदेव ने मोक्ष के बारे में बड़े विस्तार से बताया है।जो जीव अपने आठों कर्मों को नष्ट कर देता है।(ज्ञानावरण से अंतराय तक) जो अपनी आत्मा को परमात्मा बना लेता है केवल्य को प्राप्त कर लेता है। वो मोक्ष का अधिकारी बन जाता है। जिनमत अनुसार हर जीव मोक्ष जाने की शक्ति रखता है।चाहे वो मनुष्य हो या कोई भी जीव पर जाया कैसे जाए ये सबसे बड़ा प्रश्न है???
आइये जानते है मोक्ष के स्वरुप को....
मोक्ष कहा है?
करणानुयोग अनुसार मोक्ष तीन लोक के अग्रभाग अर्थात स्वर्गों से ऊपर लोक के आगे 45 योजन के विस्तार में स्थित है।यहाँ केवल सिद्ध जीव ही रहते है।और एक ही अवस्था में विराजमान है।यहाँ किसी प्रकार का भय दुःख या कोई भी संक्लेश नही है।
मोक्ष कैसा है?
मोक्ष को सिद्धशिला भी कहा जाता है जो अर्धचंद्राकार है अर्थात आधे चंद्रमा के आकार की है।जो की 45 योजन की है।यहाँ कई सिद्ध भगवान विराजमान है।और सब अलग अलग अवगाहना वाले है।
मोक्ष कब होता है?
मोक्ष होना सिर्फ चौथे काल में ही सम्भव है।पंचम काल या कलयुग में मोक्ष सम्भव नही है।
मोक्ष में अनंत सिद्ध है फिर भी जगह का अकाल क्यों नही है?
ऐसा इसलिए है क्योंकि मोक्ष में कोई भी सिद्ध भगवान सशरीरी नही है।वहां सिर्फ वह ज्ञान शरीरी विराजमान है। और इसी कारण वहां जगह का अभाव नही है।जैसे एक भगवान की अवगाहना 12 योजन है और एक 20 योजन फिर भी वह वहां विराजमान है।
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।।जय जिनेन्द्र।।
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