।।मंगलाचरण।।
मंगलमूर्ति अरहंत का नाम जपे जो कोई,
ताके कर्म-बंधन नित स्व भिन्न होई।
पावन पार्श्व जिनेश का पावन मंगल नाम,
जो सुमिरें जिनदेव को होता है शिवधाम।।
1) भगवन जिनेंद्र स्वामी भावना दिन रात गाऊँ,
होवे मेरी समाधि मुक्ति महल को पाऊँ।
भावार्थ - हे जिनेन्द्र देव ! मैं दिन रात यही भावना भाता हूँ कि जब भी मेरी मृत्यु हो तो मैं समाधि मरण को ही प्राप्त करूँ, और उसके निमित्त से मेरी मुक्ति सहज हो।
2) करूँ जिनेन्द्र आराधना संयम धर्म पालूँ,
न हो लेश कषाय राग-द्वेष निश दिन तुमको ध्याऊँ।
भावार्थ - हे भगवन ! जब भी मैं कोई कर्म करूँ तो मैं आपका ही ध्यान करूँ, जिन पथ अर्थात संयम धारण करूँ मेरे सारे राग द्वेष नष्ट हो जाये कषाय लेश मात्र न रहे और हे नाथ! मैं निशदिन आपका ध्यान करता रहूं।
3) न हो किसी से मैत्री, रिपु जग में न हो कोई,
लगन लगी हो जिन में मैं मोह को हटाऊँ।
भावार्थ - हे जगन्नाथ ! मेरा इस संसार में न ही कोई मित्र हो और न ही कोई शत्रु हो। मैं बस आपका ही ध्यान करूँ और मेरा मोहनीय कर्म नष्ट हो।
4) न चाहूँ सुर पद, मानव पद की न इच्छा,
न चाहूँ शिव पद जिन चरण को ध्याऊँ।
भावार्थ - हे नाथ ! न मुझे सुर पद की लालसा है और न ही मनुष्य जन्म की और न ही मोक्ष कि मेरी बस इतनी ही अर्ज है कि मेरे मन में बस आपके चरणों की भक्ति ही चलती रहे।
5) अटका हूँ भव मग में, आश्रय न ही कोई,
होवे सरल समाधि विपथ न अपनाऊँ।।
भावार्थ - हे प्रभु ! मैं इस संसार में अटका हुआ हूँ और न ही इस संसार में आश्रय है। हे नाथ ! मेरी समाधि सहज हो और विपथ गमन को ध्यान न करते हुए मैं इस समाधि को धारण करूँ मेरी बस इतनी ही प्रार्थना है।
6) छूटें जन्म बंधन और मृत्यु का घेरा,
पाऊँ शिव पद को न हो कर्मों का पहरा।
आशा मेरी है भगवन रत्नत्रय चित लाऊँ।।
भावार्थ - हे नाथ ! मेरी प्रार्थना है कि मैं जन्म मरण के बंधन से मुक्ति पाऊँ, मुक्ति का वरण करूँ कर्मों का नाश करूँ और रत्नत्रय का पालन करूँ और उसी के सहारे पार हो जाऊं।
7) हो अंत में समाधि रत्नत्रय का हो सुमिरन,
पञ्च परमगुरु की वाणी को मैं ध्याऊँ।
जीवन सफल हो मेरा सिद्ध सम बन जाऊँ,
होवे मेरी समाधि मुक्ति महल को पाऊँ।।
भावार्थ - हे भगवन ! जब मेरा अंत समय निकट हो अर्थात मेरा समाधि मरण निश्चित हो जाए तब मैं रत्नत्रय को ही सुमिरता रहूँ और पञ्च परमेष्ठी की वाणी का अनुशरण करता रहूँ। सिद्ध सम बनने के प्रयास से जीवन सफल बनाऊँ। इसी भावना से मेरी समाधि हो और इसके द्वारा मैं मुक्ति सुख प्राप्त करूँ।
।। इति समाधि भावना।।
By Rahul Soni
।।जय जिनेंद्र।।
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