बुधवार, 1 मार्च 2017

संसार की जड़ मिथ्यात्व

जय जिनेन्द्र दर्शकों मैं राहुल सोनी आज आपको बताऊंगा संसार की जड़ मिथ्यात्व।

आइये जानते है मिथ्यात्व क्या है? इससे क्या हानि है?और ये संसार की जड़ क्यों है?आपको बताते है मिथ्यात्व को जैन धर्म में सबसे बड़ी संसार की वजह बताया गया है।वह इसलिए क्योंकि इससे हमें लाभ कुछ नही है सिर्फ हानि ही है।अब जानते है इसके बारे में और गहराई से।

मिथ्यात्व क्या है?

असल में विपरीत मान्यताएं ही मिथ्यात्व का लक्षण है।जैसे की हम कहे की हिंसा पाप है वही मिथ्यात्व हिंसा से पुण्य की प्राप्ति बताता है।हिंसक यज्ञ करना, पशु बलि से देवी देवता को प्रसन्न करना आदि। यही मिथ्यात्व है।वीतराग को छोड़ सराग की पूजा ही मिथ्यात्व है ये तो हुए मिथ्यात्व के उदहारण अब आपको बताते है अर्हंत देव क्या बताते है इस बारे में भगवान ने कहा है जो मिथ्यात्व की पूजा करता है वह अनंत संसार में भ्रमण का कारन बनता है।तत्व के विपरीत श्रद्धान ही मिथ्यात्व है।

मिथ्यात्व से क्या हानि है?

यदि हम कहे सर्प के डसने पर हमें हानि है या लाभ तो ये प्रश्न उचित नही है क्योंकि स्वाभाविक हानि ही है।क्योंकि अगर हमें सर्प डसता है तो हमारी मृत्यु निश्चित है यदि सही समय पर उपचार न मिले तो।ठीक इसी प्रकार हम मिथ्यात्व को पूजते अथवा बड़ा मानते है तो उसमें हमारा ही नुकसान है और किसी का नही सम्यक्त्व वह औषधि है जो मिथ्यात्व रूपी विष को समाप्त कर देता है।इसलिए हमें मिथ्यात्व को नही मानना चाहिए।

मिथ्यात्व संसार की जड़ क्यों है?

ये सबसे बड़ा प्रश्न है कि मिथ्यात्व संसार की जड़ क्यों है।वह इसलिए क्योंकि जो स्वयं संसार से भ्रमित है जो संसार में डूबा है वह हमारा कैसे कल्याण कर सकता है।इसलिए हमारे आचार्यों ने इसे बाधा के रूप में बताया है। विनय पाठ की पंक्तियों में कहा भी गया है।

राग सहित जग में रुलयों मिले सरागी देव।
वीतराग भेट्यों अबे मेटो राग कुटेव।।

जो मिथ्यात्व हमे संसार में जन्म से रुलाता आया है वह हमें कैसे सुखी कर सकता है।वीतराग देव की शरण में ही सच्चा सुख है।

मिथ्यात्व के प्रकार :-

हमारे आचार्यों ने मिथ्यात्व कोदो प्रकार का बताया है।
1. गृहीत मिथ्यात्व
2. अगृहीत मिथ्यात्व
अगर हम देखे तो पंडित दौलतराम जी ने छहढाला की दूसरी ढाल में मिथ्यात्व का भली प्रकार वर्णन किया है।कहा भी है:-

जे कुगुरु कुदेव कुधर्म सेव,पोषे चिर दर्शन मोह एव।
अंतर रागादिक धरे जे, बाहर धन अम्बर ते सनेह।।

तो इस प्रकार हम मिथ्यात्व को समझे और इससे बचे और सच्चे सुख की और अग्रसर हो।
अगर आपको हमारा पोस्ट अच्छा लगा तो अभी हमे फॉलो करे लाइक करे और इसे शेयर करे।

                     ।।जय जिनेन्द्र।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

बीसवें तीर्थंकर भगवान श्री मुनिसुव्रतनाथ जी परिचय

बीसवें तीर्थंकर- श्री मुनिसुव्रतनाथ जी चिह्न- कछुआ उत्पन्न काल- 54 लाख 43 हज़ार 400 वर्ष पश्चात कछुआ चिह्न से युक्त जैन धर्म के 20वें तीर्थंक...