शुक्रवार, 30 मार्च 2018

                         ।।श्री विमलनाथ चालीसा।।

सिद्ध अनन्तानन्त नमन कर, सरस्वती को मन में ध्याय ।।
विमलप्रभु क्री विमल भक्ति कर, चरण कमल में शीश नवाय ।।
जय श्री विमलनाथ विमलेश, आठों कर्म किए नि:शेष ।।
कृतवर्मा के राजदुलारे, रानी जयश्यामा के प्यारे ।।
मंगलीक शुभ सपने सारे, जगजननी ने देखे न्यारे ।।
शुक्ल चतुर्थी माघ मास की, जन्म जयन्ती विमलनाथ की ।।
जन्योत्सव देवों ने मनाया, विमलप्रभु शुभ नाम धराया ।।
मेरु पर अभिषेक कराया, गन्धोंदक श्रद्धा से लगाया ।।
वस्त्राभूषण दिव्य पहनाकर, मात-पिता को सौंपा आकर ।।
साठ लाख वर्षायु प्रभु की, अवगाहना थी साठ धनुष की ।।
कंचन जैसी छवि प्रभु- तन की, महिमा कैसे गाऊँ मैं उनकी ।।
बचपन बीता, यौवन आया, पिता ने राजतिलक करवाया ।।
चयन किया सुन्दर वधुओं का, आयोजन किया शुभ विवाह का ।।
एक दिन देखी ओस घास पर, हिमकण देखें नयन प्रीतिभर ।।
हुआ संसर्ग सूर्य रश्मि से, लुप्त हुए सब मोती जैसे ।।
हो विश्वास प्रभु को कैसे, खड़े रहे वे चित्रलिखित से ।।
“क्षणभंगुर है ये संसार, एक धर्म ही है बस सार ।।
वैराग्य हृदय में समाया, छोडे क्रोध -मान और माया ।।
घर पहुँचे अनमने से होकर, राजपाट निज सुत को देकर ।।
देवीमई शिविका पर चढ़कर, गए सहेतुक वन में जिनवर ।।
माघ मास-चतुर्थी कारी, “नम: सिद्ध” कह दीक्षाधारी ।।
रचना समोशरण हितकार, दिव्य देशना हुई सुरवकार ।।
उपशम करके मिथ्यात्व का, अनुभव करलो निज आत्म का ।।
मिथ्यात्व का होय निवारण, मिटे संसार भ्रमण का कारणा ।।
बिन सम्यक्तव के जप-तप-पूजन, विष्फल हैँ सारे व्रत- अर्चन ।।
विषफल हैं ये विषयभोग सब, इनको त्यागो हेय जान अब ।।
द्रव्य- भाव्-नो कमोदि से, भिन्न हैं आत्म देव सभी से ।।
निश्चय करके हे निज आतम का, ध्यान करो तुम परमात्म का ।।
ऐसी प्यारी हित की वाणी, सुनकर सुखी हुए सब प्राणी ।।
दूर-दूर तक हुआ विहार, किया सभी ने आत्मोद्धारा ।।
‘मन्दर’ आदि पचपन गणधर, अड़सठ सहस दिगम्बर मुनिवर ।।
उम्र रही जब तीस दिनों क, जा पहुँचे सम्मेद शिखर जी ।।
हुआ बाह्य वैभव परिहार, शेष कर्म बन्धन निरवार ।।
आवागमन का कर संहार, प्रभु ने पाया मोक्षागारा ।।
षष्ठी कृष्णा मास आसाढ़, देव करें जिनभवित प्रगाढ़ ।।
सुबीर कूट पूजें मन लाय, निर्वाणोत्सव को’ हर्षाय ।।
जो भवि विमलप्रभु को ध्यावें। वे सब मन वांछित फल पावें ।।
‘अरुणा’ करती विमल-स्तवन, ढीले हो जावें भव-बन्धन ।।

शुक्रवार, 23 मार्च 2018

                       ।।गोम्मटेश भजन।।

होली खेले युवराज बाहुबली, होली खेले रे...
                           भरत संग होली खेले रे...... 2

कौन सा देश, कहाँ के राजा, कौन पिता कहलाय...2
कौन मात के जाय बाहुबली, होली खेले रे...
                           महल में होली खेले रे...2
   होली खेले युवराज बाहुबली, होली खेले रे...
                           भरत संग होली खेले रे......2

भारत देश में राज्य अयोध्या, ऋषभनाथ सुत पाय,
मात सुनन्दा जाय बाहुबली, होली खेले रे...
                           महल में होली खेले रे...2
होली खेले युवराज बाहुबली, होली खेले रे...
                           भरत संग होली खेले रे......2

चंदा सूरज सी छवि जिनकी, क्या क्या नाम धराये,
करत कलोल महल में दोनों सब मन भाय रे...2
होली खेले युवराज बाहुबली, होली खेले रे...
                           भरत संग होली खेले रे......2

भरत बड़े, बाहुबली छोटे, नाम जगत में पायें... 2
दो बहनों संग दोनों भैया होली खेले रे...
                        महल में होली खेले रे....
होली खेले युवराज बाहुबली, होली खेले रे...
                           भरत संग होली खेले रे......2

कालचक्र की गति है न्यारी, ऋषभ भये वैरागी,
वेष दिगम्बर धार करम संग होली खेले रे...
                    भरत संग होली खेले रे...
होली खेले युवराज बाहुबली, होली खेले रे...
                           भरत संग होली खेले रे......2

कर्म काट शिवपुर को ध्याये, तीर्थंकर पद पाये...2
आदिनाथ से पूर्व बाहुबली मुक्ति पाये रे....
                    केवली प्रथम कहाये रे....
होली खेले युवराज बाहुबली, होली खेले रे...
                           भरत संग होली खेले रे......2

गुरुवार, 22 मार्च 2018

               ।।श्री सम्भवनाथ चालीसा।।

दोहा:-
श्री जिनदेव को करके वंदन, जिनवानी को मन में ध्याय ।
काम असम्भव कर दे सम्भव, समदर्शी सम्भव जिनराय ।।

चोपाई:-
जगतपूज्य श्री सम्भव स्वामी । तीसरे तीर्थकंर है नामी ।।
धर्म तीर्थ प्रगटाने वाले । भव दुख दुर भगाने वाले ।।
श्रावस्ती नगरी अती सोहे । देवो के भी मन को मोहे ।।
मात सुषेणा पिता दृडराज । धन्य हुए जन्मे जिनराज ।।
फाल्गुन शुक्ला अष्टमी आए । गर्भ कल्याणक देव मनाये ।।
पूनम कार्तिक शुक्ला आई । हुई पूज्य प्रगटे जिनराई ।।
तीन लोक में खुशियाँ छाई । शची पर्भु को लेने आई ।।
मेरू पर अभिषेक कराया । सम्भवपर्भु शुभ नाम धराया ।।
बीता बचबन यौवन आया । पिता ने राज्यभिषेक कराया ।।
मिली रानियाँ सब अनुरूप । सुख भोगे चवालिस लक्ष पूर्व ।।
एक दिन महल की छत के ऊपर । देख रहे वन-सुषमा मनहर ।।
देखा मेघ – महल हिमखण्ड । हुआ नष्ट चली वासु प्रचण्ड ।।
तभी हुआ वैराग्य एकदम । गृहबन्धन लगा नागपाश सम ।।
करते वस्तु-स्वरूप चिन्तवन । देव लौकान्तिक करें समर्थन ।।
निज सुत को देकर के राज । वन को गमन करें जिनराज ।।
हुए स्वार सिद्धार्थ पालकी । गए राह सहेतुक वन की ।।
मंगसिर शुक्ल पूर्णिमा प्यारी । सहस भूप संग दीक्षा धारी ।।
तजा परिग्रह केश लौंच कर । ध्यान धरा पूरब को मुख कर ।।
धारण कर उस दिन उपवास । वन में ही फिर किया निवास ।।
आत्मशुद्धि का प्रबल प्रणाम । तत्क्षण हुआ मनः पर्याय ज्ञान ।।
प्रथमाहार हुआ मुनिवर का । धन्य हुआ जीवन सुरेन्द्र का ।।
पंचाश्चर्यो से देवो के । हुए प्रजाजन सुखी नगर के ।।
चौदह वर्ष की आत्म सिद्धि । स्वयं ही उपजी केवल ऋद्धि ।।
कृष्ण चतुर्थी कार्तिक सार । समोशरण रचना हितकार ।।
खिरती सुखकारी जिनवाणी । निज भाषा में समझे प्राणी ।।
विषयभोग हैं भोगों से । काया घिरती है रोगो से ।।
जिनलिंग से निज को पहचानो । अपना शुद्धातम सरधानो ।।
दर्शन-ज्ञान-चरित्र बतावे । मोक्ष मार्ग एकत्व दिखाये ।।
जीवों का सन्मार्ग बताया । भव्यो का उद्धार कराया ।।
गणधर एक सौ पाँच प्रभु के । मुनिवर पन्द्रह सहस संघ के ।।
देवी – देव – मनुज बहुतेरे । सभा में थे तिर्यंच घनेरे ।।
एक महीना उम्र रही जब । पहुँच गए सम्मेद शिखर तब ।।
अचल हुए खङगासन में प्रभु । कर्म नाश कर हुए स्वयम्भु ।।
चैत सुदी षष्ठी था न्यारी । धवल कूट की महिमा भारी ।।
साठ लाख पूर्व का जीवन । पग में अश्व का था शुभ लक्षण ।।

दोहा:-
चालीसा श्री सम्भवनाथ, पाठ करो श्रद्धा के साथ ।
मनवांछित सब पूरण होवे, जनम – मरन दुख खोवे ।।

मंगलवार, 13 मार्च 2018

                  ।।गोम्मटेश भजन।।

हे सर्वत्यागी, हे वीतरागी,
हे गोम्मटेशं तुभ्यं नमोस्तु।

हे आदिपुत्रं हे ज्ञानवृत्तम
हे जगहितेशं तुभ्यं नमोस्तु।

हे नीलकमलं हे वर्णविमलं
हे श्यामकेशं तुभ्यं नमोस्तु।

हे धनुषभृकुटि हे शान्तनयनं
हे दृष्टि नासा तुभ्यं नमोस्तु।

हे मौनअधरं हे लम्बकर्णम्
हे दिव्य ग्रीवा तुभ्यं नमोस्तु।

हे विंध्यवासी घट घट प्रवासी
न रागिद्वेषम तुभ्यं नमोस्तु।

हे मात कालल के वीर बालक
चामुंडरायं तुभ्यं नमोस्तु।

हे नेमिचन्द्रम जिन चन्द्रस्वामी
हे विंध्य गिरिवर तुभ्यं नमोस्तु।

हे प्रतिमा योगी हे कामदेवं
हे पुण्यशाली तुभ्यं नमोस्तु।

हे निर्विकारी वैराग्यधारी
मुद्रा तुम्हारी तुभ्यं नमोस्तु।

हे नाथ नारायण वासुदेवं
हे सर्वपूज्यम तुभ्यं नमोस्तु।

हे विंध्य गिरी पर प्रतिमा तुम्हारी
अप लख निहारी तुभ्यं नमोस्तु।

जय जय जय जय गोम्मटेशं......

सोमवार, 12 मार्च 2018

                        ।।श्री शान्तिनाथ चालीसा।।

दोहा:-
परमेष्ठी जिनधर्म जिन आगम मंगलकार।
जिन चैत्यालय चैत्य को वन्दन बारम्बार।।
शान्तिनाथ भगवान के करते चरण प्रणाम।
चालीसा गाते यहाँ पाने निज का धाम।।

चौपाई:-
जम्बूद्वीप में क्षेत्र बताया,
भरत क्षेत्र अनुपम कहलाया।
भारत देश रहा शुभकारी,
जिसकी महिमा जग से न्यारी।।

नगर हस्तिनापुर के स्वामी,
विश्वसेन राजा थे नामी।
रानी एरादेवी पाये,
जिनके सुत शांति जिन गाये।।

माँ के गर्भ में प्रभु जब आये,
रत्नवृष्टि तब देव कराये।
भादव कृष्ण सप्तमी जानो,
शुभ नक्षत्र भरणी पहचानो।।

ज्येष्ठ कृष्ण चौदस शुभकारी,
मेष राशि जानो मनहारी।
जन्म प्रभुजी ने जब पाया,
देवराज ऐरावत लाया।।

शची ने प्रभु को गोद उठाया,
फिर ऐरावत पर बैठाया।
पाण्डुक वन अभिषेक कराया,
सहस्त्र नेत्र से दर्शन पाया।।

पग में हिरण चिह्न शुभ गाया,
शान्तिनाथ तब नाम बताया।
पंचम चक्रवर्ती कहलाए,
कामदेव बारहवें गाए।।

तीर्थंकर सोलहवें जानो,
यथा नाम गुणकारी मानो।
नवनिधियों के स्वामी गाए,
चौदह रत्न श्रेष्ठ बतलाये।।

सहस्त्र छियानवें रानी पाये,
छह खण्डों पर राज्य चलाये।
सूर्यवंश के स्वामी गाये,
सारे जग में यश फैलाये।।

जातिस्मरण प्रभु को आया,
महाव्रतों को प्रभु ने पाया।
एक लाख राजा संग आये,
साथ में प्रभु के दीक्षा पाये।।

ज्येष्ठ कृष्ण चौदस तिथि जानो,
तप कल्यायक प्रभु का मानो।
आत्मध्यान कीन्हें तब स्वामी,
किये निर्जरा अन्तर्यामी।।

पौष सुदी दशमी शुभ आई,
केवलज्ञान की ज्योति जगाई।
समवशरण आ देव बनाये,
प्रभु की जय- जयकार लगाये।।

दिव्य देशना आप सुनाये,
धर्म ध्वजा जग में फहराये।
छत्तिस गणधर प्रभुजी पाये,
प्रथम गणि चक्रायुध गाये।।

यक्ष गरुड़ जानो तुम भाई,
यक्षी श्रेष्ठ मानसी गाई।।
योगनिरोध किये जगनामी,
गुण अनन्त पाए जिनस्वामी।।

नौ सौ मुनि श्रेष्ठ बतलाये,
साथ में प्रभु के मुक्ति पाये।
महामोक्ष फल तुमने पाया,
शिवपुर अपना धाम बनाया।।

कूट कुंदप्रभ जानो भाई,
कायोत्सर्गासन शुभ गाई।
जग में कई जिनबिम्ब निराले,
अतिशय श्रेष्ठ दिखाने वाले।।

आहार क्षेत्र बानपुर जानो,
वीना वाराह भी पहचानो।
रामटेक सीरोन कहाया,
खजुराहो पचराई गाया।।

गाँव- गाँव में बिम्ब बताये,
गिनती कहो कौन कर पाये।
जो भी अर्चा करते भाई,
अर्चा होती है फलदायी।।

कई लोगों ने शुभ फल पाये,
रोग- शोक दारिद्र नशाये।
शान्तिनाथ शान्ति के दाता,
तीनलोक में भाग्यविधाता।।

भावसहित प्रभु को जो ध्याये,
इच्छित वर वह मानव पाये।
पूजा अर्चा कर जो ध्यावें,
सुख शांति सौभग्य जगावें।।

निज आतम का वैभव पावें,
अनुक्रम से फिर शिवपुर जावें। - 2

दोहा:-
चालीसा चालीस दिन, पढ़े भाव के साथ।
सुख शान्ति आनन्द पा, बने श्री का नाथ।।
दीन- दरिद्री होये जो, या हो पुत्र विहीन।

सुत पावें सुख- सम्पदा, होवें ज्ञान प्रवीण।।

बुधवार, 7 मार्च 2018

                             ।।देव स्तुति।।

वीतराग सर्वज्ञ हितंकर भविजन की अब पूरो आस |
ज्ञान भानु का उदय करो मम मिथ्यातम का होय विनाश ॥
जीवों की हम करुणा पाले, झूठ वचन नहीं कहें कदा |
परधन कबहूँ न हरहूँ स्वामी, ब्रह्मचर्य व्रत रखें सदा ॥
तृष्णा लोभ बढ़े न हमारा, तोष सुधा निधि पिया करें |
श्री जिनधर्म हमारा प्यारा उसकी सेवा किया करें |
दूर भगावें बुरी रीतियाँ, सुखद रीति का करें प्रचार |
मेल-मिलाप बढ़ावे हम सब, धर्मोन्नति का करें प्रचार ॥
सुख-दुख में हम समता धारे, रहे अचल जिमि सदा अटल |
न्याय मार्ग का लेश न त्यागें, वृद्धि करें निज आतम बल ॥
अष्ट करम जो दुःख हेतु हैं, उनके क्षय का करें उपाय |
नाम आपका जपें निरन्तर, विघ्न शोक सब ही टल जाय ॥
आतम शुद्ध हमारा होवे, पाप मैल नहीं चढ़ें कदा |
विद्या की हो उन्नति हममें, धर्म ज्ञान हूँ बढ़े सदा |
हाथ जोड़कर शीश नवावें, तुमको भविजन खड़े-खड़े |
य सब पूरो आश हमारी चरण-शरण में आन पड़े ॥

विशिष्ट पोस्ट

बीसवें तीर्थंकर भगवान श्री मुनिसुव्रतनाथ जी परिचय

बीसवें तीर्थंकर- श्री मुनिसुव्रतनाथ जी चिह्न- कछुआ उत्पन्न काल- 54 लाख 43 हज़ार 400 वर्ष पश्चात कछुआ चिह्न से युक्त जैन धर्म के 20वें तीर्थंक...